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A Poem by Asha

11 Nov 2025 10:29 PM | Anonymous

मोहक पतझड़

हे प्रकृति ! मैं तुझ पे बलिहारी

क्या ख़ूब चलाई पिचकारी ,

चित्रकार नहीं कोई तुझ जैसा

जो दृश्य दिखाये मनोंहारी ।

प्रभु नें रहमत बरसाई है

रंगों से करी है कारीगरी ,

फूलों के दर्प को चूर किया

पत्तों की बनाई फुलवारी ।

राहों के किनारे पेड़ों की

मोहक ये छटा प्यारी -प्यारी ,

ऑखों से गुज़रते दृश्य लगें

ज्यों दुल्हन की चुनरी न्यारी ।

प्रभु तेरी लीला अजब - गजब

अद्भुत लागे ये छवि सारी ,

कहनें को मौसम पतझड़ का

पर ऋतु की महिमा है भारी ।

मन मोहित है , आनंदित है

एक अमिट छाप मन पे न्यारी ,

कुछ दिन में समय फिर बदलेगा

बिछुड़ेंगे सभी बारी बारी ।

है धन्य रचयिता हम सब का

अनुपम श्रृँगार पे मैं वारी ,

मन ! मंत्र -मुग्ध हो जाता है

कर जाता ऐसी जादूगरी ।

फिर नई कोपलें आयेंगी

होगी हरियाली सुखकारी

परिवर्तित करके रंग -रूप

यूँ ही चलती है सृष्टी सारी ।

            आशा


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